बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति
प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण
वैज्ञानिक पद्धति का लक्ष्य सत्य को ढूँढ निकालना है पर इस लक्ष्य तक एकाएक पहुँचा नहीं जा सकता। सत्य तक पहुँचने के लिए कई स्तरों में से गुजरना होता है। ऐसा इसलिए है कि वैज्ञानिक पद्धति कोई मनमाने ढंग की विधि या अव्यवस्थित तरीका नहीं है। वैज्ञानिक अध्ययन में आरम्भ से लेकर अन्त तक अत्यन्त सुनिश्चित व व्यवस्थित ढंग से कार्य करना पड़ता है। स्वभावतः ही इसमें एक स्तर से दूसरे स्तर को दूसरे से तीसरे स्तर को और इसी क्रम से आगे बढ़ना पड़ता है। इन्हीं स्तरों को वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण कहा जाता है। इन चरणों या स्तरों का उल्लेख विभिन्न विद्वानों ने बहुत कम हेर-फेर के साथ अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया है। कुछ विद्वानों के विचारों का उल्लेख करके हम इस बात को और भी स्पष्ट रूप में समझा सकते हैं। श्री अगस्त कॉम्टे ने लिखा है कि वैज्ञानिक पद्धति अथवा निश्चयी अथवा स्पष्ट प्रणाली में हम सर्वप्रथम अध्ययन विषय को चुनते हैं और फिर निरीक्षण द्वारा उस विषय से सम्बद्ध समस्त स्पष्ट तथ्यों को एकत्रित करते हैं और इसके बाद इन तथ्यों का, उनकी सामान्य विशेषताओं के आधार पर, वर्गीकरण करते हैं और अन्त में तथ्यों के विश्लेषण व परीक्षण द्वारा उस विषय से सम्बद्ध कोई निष्कर्ष निकालते या नियमों को प्रतिपादित करते हैं। इस प्रकार
श्री कॉम्टे के अनुसार-
(अ) विषय का चुनाव,
(ब) निरीक्षण द्वारा प्रत्यक्ष होने वाले तथ्यों का संकलन,
(स) तथ्यों का वर्गीकरण, (द) तथ्यों का परीक्षण और
(य) नियमों का प्रतिपादन वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण हैं।
श्री जार्ज ए० लुण्डबर्ग ने वैज्ञानिक पद्धति के निम्नलिखित चार चरणों का उल्लेख किया है -
(1) कार्यनिर्वाही ( कार्यकर) प्राक्- कल्पना,
(2) तथ्यों का निरीक्षण तथा लेखन,
(3) संकलित तथ्यों का वर्गीकरण व संगठन,
(4) सामान्यीकरण (सामान्य नियम बना लेना)।
प्रो० यंग ने भी वैज्ञानिक पद्धति के चार चरणों का उल्लेख किया है-
(क) कार्यकर प्राक्कल्पना का निर्माण,
(ख) तथ्यों का निरीक्षण, एकत्रीकरण तथा लेखन,
(ग) लिखित तथ्यों का श्रेणियों और अनुक्रमों में वर्गीकरण तथा
(घ) वैज्ञानिक सामान्यीकरण तथा नियमों का प्रतिपादन।
(1) कार्यनिर्वाही प्राक्कल्पना (उपकल्पना ) का निर्माण
वैज्ञानिक अध्ययन कोई सरल कार्य नहीं है। इसका सम्बन्ध प्रायः जटिल घटनाओं से होता है। अतः शोधकर्ता के लिए अपने अध्ययन के दौरान भटक जाने की सम्भावना हर पग पर ही रहती है। ऐसा न हो एवं उसका ध्यान कुछ निश्चित पक्षों पर केन्द्रित रहे, इसके लिए यह आवश्यक है कि शोधकर्त्ता अपने अध्ययन विषय के सम्बन्ध में पहले से ही सामान्य ज्ञान के आधार पर कुछ अनुमान या निष्कर्ष निकाल लें एवं फिर उन पर ध्यान केन्द्रित करते हुए वास्तविक तथ्यों के आधार पर यह परीक्षा कर ले कि उसका वह पूर्व अनुमान या निष्कर्ष सच है या गलत। इन्हीं पूर्व अनुमानों को ही प्राक्कल्पना या उपकल्पना कहते हैं और इसका उचित ढंग से निर्माण वैज्ञानिक पद्धति का सर्वप्रथम चरण है।
(2) तथ्यों का निरीक्षण तथा संकलन
प्राक्कल्पना का निर्माण हो जाने पर अध्ययन का क्षेत्र और लक्ष्य दोनों ही निश्चित हो जाते हैं। अतः अब यह सम्भव हो जाता है कि हम अपने अध्ययन विषय से सम्बद्ध वास्तविक तथ्यों का निरीक्षण करें और उनका संकलन भी। वास्तविक निरीक्षण द्वारा तथ्यों का संकलन किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन का एक अपिरहार्य अंग है। पर यथार्थ निरीक्षण कठिन है। हमारी इन्द्रियाँ सरलता से धोखा खा जाती हैं; हम कदाचित् घटित होने वाली किसी घटना को समग्र रूप में देखते हैं; हमारे लिए तथ्य और अनुमान को अलग-अलग रखना कठिन होता है; हम जो कुछ देखते हैं उसमें अपनी भावनाओं तथा संवेगों को भी जोड़ देने का लोभ संभाल नहीं पाते हैं; समग्र को देखना या कम से कम समग्र के अन्तः सम्बद्ध भागों को देखना सरल नहीं है। इसीलिए निरीक्षण को अधिकाधिक वैज्ञानिक स्तर पर लाने के लिए यह आवश्यक है कि अन्य विद्वानों की उस समस्या से सम्बद्ध कृतियों का अध्ययन करके निरीक्षणीय तथ्यों से, उनकी विशेषताओं व कमियों से अधिकाधिक परिचित हो लें। साथ ही, वास्तविक निरीक्षण करने से पहले पक्षपातरहित होकर उन तथ्यों का चुनाव कर लेना आवश्यक होता है, जो हर सम्भव रूप में प्राक्कल्पना की सत्यता या असत्यता को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हों। इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि उन तथ्यों को ही चुना जाए जो कि पूर्ण रूप से अध्ययन विषय या समस्या का प्रतिनिधित्व कर सकें और साथ ही इन तथ्यों को परिमाणात्मक रूप से अभिव्यक्त करना सम्भव हो। केवल कुछ इधर-उधर के विशिष्ट तथ्यों को, रोचक या आकर्षक तथ्यों को, हृदयस्पर्शी या मनोरंजक तथ्यों को निरीक्षण करने या संकलित करने मात्र से ही वैज्ञानिक का काम नहीं चल सकता- समस्त घटना या समस्या का पूर्णतया विश्लेषण व बोध करने के लिए आवश्यक पर्याप्त तथ्यों का निरीक्षण व संगठन होना चाहिए। तथ्यों को संकलन करने या प्राप्त करने के दो प्रमुख स्रोतों का उल्लेख किया जा सकता है - प्रथम तो ऐतिहासिक स्रोत है, जिसके अन्तर्गत पुराने ग्रंथ, शिलालेख, प्राचीन अवशेष, नरकंकाल आदि आते हैं। द्वितीय स्रोत क्षेत्रीय स्रोत हैं, जिसके अन्तर्गत प्रत्यक्ष निरीक्षण, साक्षात्कार अनुसूची तथा प्रश्नावली, अन्य जीवित सूचनादाता आदि आते हैं। आवश्यकतानुसार इन स्रोतों से सूचनाएँ या तथ्य एकत्रित किए जाते हैं। इसके लिए किन-किन स्रोतों का प्रयोग किया जाएगा यह अध्ययन विषय की प्रकृति व क्षेत्र पर निर्भर करता है।
(3) एकत्रित तथ्यों का वर्गीकरण
केवल तथ्यों के ढेर को इकट्ठा कर लेने से ही हम किसी भी वैज्ञानिक निष्कर्ष तक पहुँच नहीं सकते। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम तथ्यों का कुछ क्रमों या अनुक्रमों में वर्गीकरण व संगठन कर लें ताकि वे अर्थपूर्ण हो जायें। एकत्रित तथ्यों का वर्गीकरण उन तथ्यों में पाई जाने वाली समानता व भिन्नता के आधार पर कुछ वर्गों तथा उपवर्गों में अथवा एक क्रम से किया जाता है। इस प्रकार एक क्रम से या कुछ वर्गों में व उपवर्गों में तथ्यों का वर्गीकरण कर लेने से जटिल व अस्पष्ट तथ्यों के ढेर सरल व स्पष्ट हो जाते हैं और उनका विश्लेषण करना सुविधाजनक होता है। अनुसन्धानकर्ता द्वारा किए जाने वाले वर्गीकरण की प्रकृति उसकी अपनी अर्न्तदृष्टि, अनुभव, योग्यता, अध्ययन का उद्देश्य और तथ्यों की पूर्णता व यथार्थता पर निर्भर करेगी। पर किसी भी अवस्था में वर्गीकरण का कार्य जितनी कुशलता व स्पष्ट रूप में किया जाएगा, वैज्ञानिक निष्कर्ष तक पहुँचना अनुसन्धानकर्त्ता के लिए उतना ही सरल होगा।
(4) वैज्ञानिक निष्कर्षीकरण (सामान्यीकरण) तथा नियमों का प्रतिपादन
वैज्ञानिक पद्धति का अन्तिम चरण वैज्ञानिक सामान्यीकरण तथा नियमों का प्रतिपादन करना है। एकत्रित तथ्यों का वर्गीकरण जब हम सुनिश्चित व सुव्यवस्थित रूप में कर लेते हैं, तो उनका विश्लेषण करना भी हमारे लिए सरल हो जाता है। उन विश्लेषणों के आधार पर अनुसन्धानकर्त्ता एक घटना- विशेष के सम्बन्ध में नियमों को प्रतिपादित करता है। वैज्ञानिक सामान्यीकरण तथा नियमों का प्रतिपादन करने के लिए तार्किक पद्धति, सांख्यिकीय पद्धति तथा आगमन व निगमन पद्धतियों को अपनाया जाता है। आवश्यकतानुसार इनमें से किसी एक या एकाधिक पद्धतियों का उपयोग वैज्ञानिक नियम के प्रतिपादन में किया जाता है। वैज्ञानिक नियम से हमारा तात्पर्य उस संक्षिप्त व्याख्या से है जो कि एक घटना या समस्या की प्रकृति व उसके कारणों का निश्चित परिस्थितियों के अन्तर्गत, स्पष्टीकरण करती है। इससे यह स्पष्ट है कि वैज्ञानिक नियम शाश्वत या अन्तिम नहीं होते हैं अपितु उन परिस्थितियों या अवस्थाओं में, जिनके अन्तर्गत उस नियम का प्रतिपादन किया गया है, भारी परिवर्तन होने पर नियम की यथार्थता भी कम हो जाती है और नए तौर पर नए नियम का प्रतिपादन आवश्यक हो जाता है।
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- प्रश्न- अनुसंधान की अवधारणा एवं चरणों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अनुसंधान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये तथा तथ्य व सिद्धान्त के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शोध की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शोध के अध्ययन-क्षेत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'वैज्ञानिक पद्धति' क्या है? वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
- प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शोध से क्या आशय है?
- प्रश्न- शोध की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- शोध के प्रमुख चरण बताइये।
- प्रश्न- शोध की मुख्य उपयोगितायें बताइये।
- प्रश्न- शोध के प्रेरक कारक कौन-से है?
- प्रश्न- शोध के लाभ बताइये।
- प्रश्न- अनुसंधान के सिद्धान्त का महत्व क्या है?
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के आवश्यक तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ लिखो।
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताओ।
- प्रश्न- गृह विज्ञान से सम्बन्धित कोई दो ज्वलंत शोध विषय बताइये।
- प्रश्न- शोध को परिभाषित कीजिए तथा वैज्ञानिक शोध की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- गृह विज्ञान विषय से सम्बन्धित दो शोध विषय के कथन बनाइये।
- प्रश्न- एक अच्छे शोधकर्ता के अपेक्षित गुण बताइए।
- प्रश्न- शोध अभिकल्प का महत्व बताइये।
- प्रश्न- अनुसंधान अभिकल्प की विषय-वस्तु लिखिए।
- प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के चरण लिखो।
- प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के उद्देश्य क्या हैं?
- प्रश्न- प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना से आप क्या समझते हो?
- प्रश्न- 'ऐतिहासिक उपागम' से आप क्या समझते हैं? इस उपागम (पद्धति) का प्रयोग कैसे तथा किन-किन चरणों के अन्तर्गत किया जाता है? इसके अन्तर्गत प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख स्रोत भी बताइए।
- प्रश्न- वर्णात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
- प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प क्या है? इसके विविध प्रकार क्या हैं?
- प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध का अर्थ, विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए।
- प्रश्न- पद्धतिपरक अनुसंधान की परिभाषा दीजिए और इसके क्षेत्र को समझाइए।
- प्रश्न- क्षेत्र अनुसंधान से आप क्या समझते है। इसकी विशेषताओं को समझाइए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व प्रकार बताइए। इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकार एवं विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक अनुसन्धान की गुणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के गुण लिखो।
- प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के दोष बताओ।
- प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान के दोष बताओ।
- प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन और सर्वेक्षण अनुसंधान में अंतर बताओ।
- प्रश्न- पूर्व सर्वेक्षण क्या है?
- प्रश्न- परिमाणात्मक तथा गुणात्मक सर्वेक्षण का अर्थ लिखो।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ बताकर इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- सर्वेक्षण शोध की उपयोगिता बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति कीक्या उपयोगिता है? सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति की क्या उपयोगिता है?
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न गुण बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या सीमाएँ हैं?
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की सामान्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या उपयोगिता है?
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की विषय-सामग्री बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में तथ्यों के संकलन का महत्व समझाइये।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के प्रमुख चरणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अनुसंधान समस्या से क्या तात्पर्य है? अनुसंधान समस्या के विभिन्न स्रोतक्या है?
- प्रश्न- शोध समस्या के चयन एवं प्रतिपादन में प्रमुख विचारणीय बातों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
- प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
- प्रश्न- अनुसंधान समस्या के प्रकार बताओ।
- प्रश्न- शोध समस्या किसे कहते हैं? शोध समस्या के कोई चार स्त्रोत बताइये।
- प्रश्न- उत्तम शोध समस्या की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
- प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
- प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
- प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
- प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
- प्रश्न- परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट कीजिये तथा एक अच्छी परिकल्पना की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- एक उत्तम शोध परिकल्पना की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- उप-कल्पना के परीक्षण में होने वाली त्रुटियों के बारे में उदाहरण सहित बताइए तथा इस त्रुटि से कैसे बचाव किया जा सकता है?
- प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
- प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
- प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
- प्रश्न- उपकल्पना की परिभाषाएँ लिखो।
- प्रश्न- उपकल्पना के निर्माण की कठिनाइयाँ लिखो।
- प्रश्न- शून्य परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
- प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
- प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
- प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
- प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- महत्वशीलता स्तर या सार्थकता स्तर (Levels of Significance) को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइए?
- प्रश्न- शून्य परिकल्पना में विश्वास स्तर की भूमिका को समझाइए।